इन दिनों मामला बड़ा अजीब हो गया है। जिसे जो समझो, वो वह नहीं निकलता है । जिसे मॉडल समझो वो कॉल गर्ल निकलती है, जिसे धुरंधर टीम समझो वो फिसड्डी निकलती है, जिसे कहीं न गिनो वो ओलंपिक का राज्यवर्धन सिंह राठौर निकलता है और जिसे हिन्दुस्तानी पुलिस समझो वो चोर का बाप निकलती है।बहरहाल, इसी असमंजस के माहौल में उत्तर प्रदेश की एटा पुलिस ने एक अनोखी मिसाल कायम की है।उसने चोर और पुलिस का भेद खत्म कर दिया है। न....न.... न....आप गलत न समझें......एटा पुलिस ने खुद चोरी शुरु नहीं की है बल्कि उसने चोरों को शहर का कोतवाल बना दिया है। है न दिलचस्प कहानी। एटा में अब शहर के बदमाश पहरेदारी कर रहे हैं।पुलिस का मानना है कि जब चोर ही तिजोरी की रखवाली करेंगे तो उन्हें लूटेगा कौन।एटा पुलिस ने फिलहाल पहले चरण में शहर के 1600 नामजद मुजरिमों में से 300 मुजरिमों को ये जिम्मेदारी सौंपी है। पुलिस का कहना है कि अगर उन्हें सुधारने की ये कोशिश कामयाब रहती है तो धीरे-धीरे बाकी मुजरिमों को भी शहर का कोतवाल बना दिया जाएगा।भई मजा आ गया.....जब चोर बना कोतवाल तो अब डर काहे का....
Wednesday, December 29, 2004
Monday, December 27, 2004
एक त्रासदी से हिले, एक शर्म से झुके
26 दिसंबर......।कहने को तो भारत में ये रविवार का दिन था...यानी आराम का दिन। लेकिन देश में उदित हुई पहली किरण ही देशवासियों को संदेश दे गई कि 26 दिसंबर इतिहास में काले रविवार के रुप में तब्दील होने जा रहा है।चेन्नई के मरीना बीच पर समुद्र की ऊंची लहरों के कहर की खबरें आना शुरु हुई तो शाम तक समुद्री तूफान आतंक में बदल चुका था।क्या तमिलनाडु ,क्या आंध्र प्रदेश और क्या अंडमान.....मौत का आंकडा बढ़ता जा रहा था। सरकारी आंकडें कुछ भी कहें ,लेकिन सचाई में करीब चार हजार लोग मर चुके थे। दिल दहला हुआ था और टेलीविजन पर सिर्फ और सिर्फ समुद्री तूफान की ही खबरें प्रसारित होती रही। इसी दौरान, ढाका में भी कुछ घट रहा था। भारत बांग्लादेश से क्रिकेट में जूझ रहा था। पुछल्ले बल्लेबाजों की तमाम कोशिशें नाकाम साबित हुई और भारत 15 रनों से हार गया।बांग्लादेश ने पहली बार भारत को एकदिवसीय मैच में हरा दिया।धुरंधरों से भरी भारतीय क्रिकेट टीम के लिए इससे शर्मनाक और क्या हो सकता था। लेकिन...रविवार ही काला था...तो ये तो होना ही था। भारतीय क्रिकेट टीम के लिए राहत की बात सिर्फ यही रही कि समुद्री तूफान की त्रासदी ने भारत की इस शर्मनाक हार पर पर्दा ढक दिया। ...आप क्या सोचते हैं ?
ये कैसा मंदिर....
मंदिर और दरगाहो पर घड़ी , घंटे या शराब चढ़ाना तो आपने सुना होगा । लेकिन सूरत में एक ऐसा मंदिर है जहां भगवान को सिगरेट चढ़ाने का रिवाज है। वो भी जलाकर।है न मजेदार खबर।लेकिन जनाब ये बिलकुल सच है।सूरत के कतार गांव में एक ऐसा मंदिर है, जहां श्रद्धालु मन्नत पूरी होने की खातिर मंदिर में सिगरेट चढ़ाते हैं।ये मंदिर भावा देव का है और यहां ये रिवाज अरसे पुराना है।दिलचस्प बात ये है कि मंदिर के पुजारी भी मानते हैं कि भामा देव अगरबत्ती की जगह सिगरेट चढ़ाने से जल्दी खुश होते हैं। इस मंदिर में सबसे ज्यादा भीड़ अमावस्या के दिन होती है।उस दिन श्रद्धालुओ की जमात में भारी भीड़ तांत्रिको की होती है। बहरहाल,अगली बार अगर आप सूरत जाएं तो इस अनोखे मंदिर में दर्शन करना न भूलें।
Sunday, December 26, 2004
वाह रे स्पाइडरमैन...
ताइवान में एक युवक ने 101 मंजिली इमारत पर महज हाथ के सहारे चढ़ कर सबको चौका दिया । फ्रांस के एलेन रोबर्ट को ताईपेई की इस करीब 508 मीटर लम्बी इमारत पर चढ़ने में चार घंटे लगे। ऊंची इमारतो पर हाथ के सहारे चढ़ने में माहिर रोबर्ट को स्पाईडर मैन कहा जाता है। इमारत के ऊपर पहुचने पर उसने कहा कि ये उसके लिए भी हैरतअंगेज है। रोबर्ट के चढ़ते ही नीचे खड़े हजारो लोगो ने हाथ हिलाकर उसका स्वागत किया। इससे पहले रोबर्ट पेरिस के एफिल टावर,न्यूयार्क की एम्पायर स्टेट बिल्डिंग, सिडनी के ओपेरा हाउस और कुआलालम्पुर की दो ऊंची इमारतो पर चढ़ने में सफलता पाई है।
Monday, November 08, 2004
अब मिल सकेंगे डिजिटल सर्टिफिकिट
जल्द ही कागज़ी सर्टिफिकिट पुरानी बात होने वाले हैं, क्योंकि आन्ध्र प्रदेश की सरकार ने अब डिजिटल सर्टिफिकिट जारी करने का फैसला किया है। इसका मुख्य उद्देश्य ई-प्रशासन को बढ़ावा देना है। आन्ध्र प्रदेश यह पहल करने वाला प्रथम राज्य होगा। आन्ध्र प्रदेश सरकार की एक इकाई 'आन्ध्र प्रदेश प्रौद्योगिकी सेवा' (APTS), जो प्रशासन की सूचना प्रौद्योगिकी से जुड़ी ज़रूरतों को पूरा करती है, ने आईटी क्षेत्र की प्रमुख कम्पनी टाटा कन्सल्टेन्सी सर्विसिज़ (TCS) के साथ अनुबन्ध किया है। ताकि इलेक्ट्रॉनिक दस्तावेज़ों और डिजिटल सर्टिफिकिट आदि को तकनीकी तौर पर सहज रूप से जारी किया जा सके। यह अनुबन्ध एपीटीएस को सभी सरकारी प्रक्रमों के लिए डिजिटल सर्टिफिकिट देने की आधिकारिक क्षमता प्रदान करेगा। इस मसौदे में ई-सेवा, कागज़ रहित कार्यालय के विकास और स्मार्ट गवर्नेन्स जैसे अन्य विषय भी सम्मिलित हैं।
Wednesday, October 20, 2004
ब्राडबैंड के कई होंगे फायदे
अभी हाल में ही भारत सरकार ने अपनी ब्राडबैंड नीति की घोषणा की है। अभी भारत में ज्यादातर डायल अप सेवा ही उपलब्ध है जिसकी अधिकतम गति मात्र 56 केबीपीएस ही है। डाट के अनुसार ब्राडबैंड से 256 केबीपीएस तक की गति प्राप्त की जा सकती है। डीएसएल, एसडीएसएल, वायरलैस और केबल इंटरनेट आदि तकनीकें ब्राडबैंड के ही अन्तर्गत आती हैं। अब वह समय आ गया है जब आपको कम्प्यूटर का स्क्रीन देखते हुए पेज डाउनलोड होने का घण्टों इन्तजार नहीं करना पड़ेगा। साथ ही इन्टरनेट की अन्य तीव्र गति आधारित सेवाएं जैसे फिल्म और गानों को डाउनलोड करना व वीडिओ कॉंफ्रेंसिंग भी अब दूर नहीं।
Friday, August 27, 2004
India: the next economic giant
भारत: अगली आर्थिक महाशक्ति
थिंक टैंक लोवी इन्स्टीट्यूट, सिडनी के एक नवीन अध्ययन के अनुसार भारत एक आर्थिक महाशक्ति के रूप में तेज़ी से उभर रहा है। भारत की अर्थव्यवस्था विश्व में सबसे तीव्र गति से बढ़ रही अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। इस कारण आर्थिक शक्ति संतुलन के एशिया की तरफ स्थानान्तरित होने की प्रक्रिया भी तेज़ हो रही है। डॉ मार्क थर्लवेल की ''इंडिया: द नेक्ट इकोनोमिक जाइंट'' नामक इस रिपोर्ट के अनुसार इसका प्रमुख कारण है, भारत के पास अन्य विकसित देशों की अपेक्षा तुलनात्मक रूप से कम वेतन पर काम करने वाले लोगों की भारी संख्या और उनकी अंग्रेज़ी समझने की योग्यता।
इस रिपोर्ट के लोकार्पण के अवसर पर ऑस्ट्रेलिया के वाणिज्य मन्त्री ने कहा कि उनका देश भारत के बढ़ते बाज़ार में निवेश करने का इच्छुक है। इससे दोनों देशों के आर्थिक सम्बन्ध और अधिक मज़बूत होंगे।
यह विचारणीय बात है कि भ्रष्टाचार और जटिल नौकरशाही संरचना जैसे अवरोधों के बावज़ूद भी भारत तीव्रता से उन्नति के शिखर पर चढ़ रहा है। परन्तु भ्रष्टाचार के कारण देश की अधिकांश गरीब जनता तक इस आर्थिक विकास का कोई विशेष लाभ नहीं पहुंच पा रहा है। यदि इन दोनों नकारात्मक कारकों पर लगाम कसी जा सके तो शीघ्र ही भारत अपना नाम विकसित देशों की सूची में दर्ज करा सकता है।
थिंक टैंक लोवी इन्स्टीट्यूट, सिडनी के एक नवीन अध्ययन के अनुसार भारत एक आर्थिक महाशक्ति के रूप में तेज़ी से उभर रहा है। भारत की अर्थव्यवस्था विश्व में सबसे तीव्र गति से बढ़ रही अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। इस कारण आर्थिक शक्ति संतुलन के एशिया की तरफ स्थानान्तरित होने की प्रक्रिया भी तेज़ हो रही है। डॉ मार्क थर्लवेल की ''इंडिया: द नेक्ट इकोनोमिक जाइंट'' नामक इस रिपोर्ट के अनुसार इसका प्रमुख कारण है, भारत के पास अन्य विकसित देशों की अपेक्षा तुलनात्मक रूप से कम वेतन पर काम करने वाले लोगों की भारी संख्या और उनकी अंग्रेज़ी समझने की योग्यता।
इस रिपोर्ट के लोकार्पण के अवसर पर ऑस्ट्रेलिया के वाणिज्य मन्त्री ने कहा कि उनका देश भारत के बढ़ते बाज़ार में निवेश करने का इच्छुक है। इससे दोनों देशों के आर्थिक सम्बन्ध और अधिक मज़बूत होंगे।
यह विचारणीय बात है कि भ्रष्टाचार और जटिल नौकरशाही संरचना जैसे अवरोधों के बावज़ूद भी भारत तीव्रता से उन्नति के शिखर पर चढ़ रहा है। परन्तु भ्रष्टाचार के कारण देश की अधिकांश गरीब जनता तक इस आर्थिक विकास का कोई विशेष लाभ नहीं पहुंच पा रहा है। यदि इन दोनों नकारात्मक कारकों पर लगाम कसी जा सके तो शीघ्र ही भारत अपना नाम विकसित देशों की सूची में दर्ज करा सकता है।
Monday, August 23, 2004
जनचेतना उन्नायक गोस्वामी तुलसीदास
जो राम राज्य गाया तुमने, छाया है जिसका यश-वितान,
थे राव रंक सब सुखी जहाँ, थे ज्ञान-कर्म से मुखर प्राण,
युग-युग की दृढ़ शृंखला तोड़, हो शुभ्र स्वराज्य का फिर विहान,
इस राष्ट्र जागरण के इस युग में, कवि उठो पुन: तुम बन महान।
- श्री सोहनलाल द्विवेदी कृत 'तुलसीदास' कविता से
श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी (22 अगस्त) को एक और यथार्थ जनचेतना उन्नायक की जयन्ती गुज़र गयी; लेकिन भारत उदय के खोखले प्रचार और सत्तधारी पक्ष के एक तथाकथित महान स्वर्गवासी नेता की जयन्ती पर जितना हो-हल्ला होता है, उसका चतुर्थांश भी देखने को नहीं मिला।
वस्तुत: गोस्वामी तुलसीदास एक तत्वदर्शी कवि और क्रान्तिकारी मनीषी थे। उन्होने भारत की तत्कालीन स्थित को समझ कर राष्ट्र की जर्जर चेतना में नवप्राण का संचार करने के लिये रामचरित की रचना की थी। उन्होने अपनी लेखनी से स्वयं को हतभाग्य समझने वाले पराधीन राष्ट्र में आत्मविश्वास का तेज उत्पन्न करने का कार्य किया। यद्यपि यह सब उन्होने सीधे न कहकर रामकथा के माध्यम से व्यक्त किया। क्योंकि वे राष्ट्रीय स्वर के आरोह-अवरोह की लय को पहचानते थे और यह जानते थे कि भारत में राष्ट्रीय चेतना का जागरण भी केवल आध्यात्मिक उन्नति से ही सम्भव है।
तुलसी साहित्य, विश्व साहित्य के प्रमुख रत्नों में विशिष्ट स्थान रखता है। काव्य के रूप में यह अद्वितीय है ही, किन्तु साथ ही यह वैचारिक क्षितिज पर अपने पाठक के सम्मुख नये आयामों को उद्घटित करता है। इसके बारे में कहा जा सकता है कि जो जितना गहरा उतरता है, वो उतने ही भव्य रत्न पाता है। अत: तुलसी साहित्य का अनुशीलन प्रत्येक भारतीय के लिये आवश्यक ही नहीं, अपितु अपरिहार्य है।
थे राव रंक सब सुखी जहाँ, थे ज्ञान-कर्म से मुखर प्राण,
युग-युग की दृढ़ शृंखला तोड़, हो शुभ्र स्वराज्य का फिर विहान,
इस राष्ट्र जागरण के इस युग में, कवि उठो पुन: तुम बन महान।
- श्री सोहनलाल द्विवेदी कृत 'तुलसीदास' कविता से
श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी (22 अगस्त) को एक और यथार्थ जनचेतना उन्नायक की जयन्ती गुज़र गयी; लेकिन भारत उदय के खोखले प्रचार और सत्तधारी पक्ष के एक तथाकथित महान स्वर्गवासी नेता की जयन्ती पर जितना हो-हल्ला होता है, उसका चतुर्थांश भी देखने को नहीं मिला।
वस्तुत: गोस्वामी तुलसीदास एक तत्वदर्शी कवि और क्रान्तिकारी मनीषी थे। उन्होने भारत की तत्कालीन स्थित को समझ कर राष्ट्र की जर्जर चेतना में नवप्राण का संचार करने के लिये रामचरित की रचना की थी। उन्होने अपनी लेखनी से स्वयं को हतभाग्य समझने वाले पराधीन राष्ट्र में आत्मविश्वास का तेज उत्पन्न करने का कार्य किया। यद्यपि यह सब उन्होने सीधे न कहकर रामकथा के माध्यम से व्यक्त किया। क्योंकि वे राष्ट्रीय स्वर के आरोह-अवरोह की लय को पहचानते थे और यह जानते थे कि भारत में राष्ट्रीय चेतना का जागरण भी केवल आध्यात्मिक उन्नति से ही सम्भव है।
तुलसी साहित्य, विश्व साहित्य के प्रमुख रत्नों में विशिष्ट स्थान रखता है। काव्य के रूप में यह अद्वितीय है ही, किन्तु साथ ही यह वैचारिक क्षितिज पर अपने पाठक के सम्मुख नये आयामों को उद्घटित करता है। इसके बारे में कहा जा सकता है कि जो जितना गहरा उतरता है, वो उतने ही भव्य रत्न पाता है। अत: तुलसी साहित्य का अनुशीलन प्रत्येक भारतीय के लिये आवश्यक ही नहीं, अपितु अपरिहार्य है।
Saturday, August 21, 2004
सावरकर पर विवाद की काली छाया
स्वातन्त्र्य वीर सावरकर पर एक बार फिर विवाद का काला साया छा गया और इसके चलते संसद में दो दिनों तक गतिरोध कायम रहा। यह अत्यन्त विक्षोभ की बात है कि ऐसे व्यक्ति के बारे में, जिसने अपना सम्पूर्ण जीवन राष्ट्र के प्रति समर्पित कर दिया, सरकार ऐसा नकारात्मक रुख रखती है। सत्ताधारी दल की एकमात्र हास्यास्पद दलील यह है कि सावरकर ने अंग्रेजों से क्षमा याचना कर कारागार से मुक्ति की प्रार्थना की थी, अत: वे स्वतन्त्रता सेनानी कहलाने के हकदार नहीं है; यद्यपि इसका कोई भी प्रमाण सत्ताधारी दल के पास नहीं है।
कांग्रेस ने पहले भी वीर सावरकर के तैलचित्र को संसद भवन में स्थापित करने का विरोध किया था। परन्तु शायद उन्हें यह स्मरण नहीं है कि श्रीमती इन्दिरा गाँधी ने स्वयं सावरकर जयन्ती को उत्साह पूर्वक मनाये जाने की इच्छा व्यक्त की थी। सावरकर रचित '1857 का स्वातंत्र्य समर' नामक पुस्तक ने सभी क्रान्तिकारियों के लिये सतत प्रेरणा स्रोत का कार्य किया, ऐसे ही क्रान्तिकारियों की सूची में चन्द्रशेखर आज़ाद और भगत सिंह भी सम्मिलित हैं।
वीर सावरकर के प्रति सत्ताधारी पक्ष के इस नकारात्मक रवैये का एकमात्र कारण है उनकी हिन्दुत्वनिष्ठा। किन्तु वोटों के लालच में राजनीतिक दल प्राय: यह भूल जाते हैं कि देशभक्त क्रांतिकारियों को क्षुद्र राजनीतिक स्वार्थ की ऐनक से नहीं देखना चाहिये, अपितु उनकी मान-प्रतिष्ठा करके राष्ट्र के समक्ष एक आदर्श प्रस्तुत करना चाहिये। चाहे वे किसी भी विचारधारा से क्यों न जुडे हुए हों।
Sunday, August 08, 2004
Teaching Astrology in Universities Appropriate?
विश्वविद्यालयों में ज्योतिष अध्यापन का औचित्य
श्री अर्जुन सिंह जहाँ एक तरफ पूर्व मानव संसाधन विकास मंत्री श्री मुरली मनोहर जोशी के सभी निर्णयों को परिवर्तित करते जा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर उन्होंने विश्वविद्यालयों में ज्योतिष पढाये जाने का पूर्ण समर्थन किया है। यद्यपि वे सम्भवत: यह भूल गये हैं कि वे उसी दल से सम्बद्ध हैं, जिसने मुरली मनोहर जोशी के इस कदम की अंधविश्वास कहकर तीव्र आलोचना की थी।
यह भारत का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि देश में वैज्ञानिक सोच विकसित करने के बजाय सरकार अन्धविश्वास को बढ़ावा देने के लिए लाखों रुपय खर्च कर रही है। श्री अर्जुन सिंह का तर्क है कि सभी लोग मुहूर्त देखकर कार्य करते हैं, अत: इसका विरोध नहीं किया जाना चाहिए। परन्तु यह तर्क न होकर एक मूर्खतापूर्ण कुतर्क है। यदि कोई कार्य अन्धविश्वासपूर्ण है, तो उसे सुधारा जाना चाहिये न कि उसका समर्थन किया जाना चाहिये। राहु काल आदि का विचार करके देश में अनेकों लोग अपना बहुमूल्य समय नष्ट करते हैं और इससे सम्पूर्ण राष्ट्र की उत्पादकता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। यदि ज्योतिष से इस प्रकार का कोई लाभ हो, तो भारत एक विकसित राष्ट्र होता, न कि अमेरिका और पश्चिमी यूरोप के वे देश जहाँ ज्योतिष जैसे अन्धविश्वासों को प्रत्येक कार्य के बीच नहीं घसीटा जाता है।
महर्षि दयानन्द सरस्वती और महात्मा गाँधी जैसे महापुरुषों ने भी ज्योतिष को एक घातक अन्धविश्वास की संज्ञा दी है। महर्षि दयानन्द सरस्वती के अनुसार वेदों में कहीं भी ज्योतिष का उल्लेख नहीं है, फिर भी इस अन्धविश्वास का प्रचार वैदिक ज्योतिष के नाम से किया जाता है। विज्ञान और सामान्य युक्ति, दोनों ये प्रमाणित करते हैं कि पौरुष और परिश्रम से मनुष्य अपना भाग्य स्वयं गढ़ता है।
अत: सम्पूर्ण राष्ट्र के लिए यही उचित होगा कि विश्वविद्यालयों में ज्योतिष का अध्यापन न हो, अपितु सिर्फ और सिर्फ वे विषय ही पढ़ाए जाएं जोकि विज्ञान की कसौटी पर सही सिद्ध हों।
श्री अर्जुन सिंह जहाँ एक तरफ पूर्व मानव संसाधन विकास मंत्री श्री मुरली मनोहर जोशी के सभी निर्णयों को परिवर्तित करते जा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर उन्होंने विश्वविद्यालयों में ज्योतिष पढाये जाने का पूर्ण समर्थन किया है। यद्यपि वे सम्भवत: यह भूल गये हैं कि वे उसी दल से सम्बद्ध हैं, जिसने मुरली मनोहर जोशी के इस कदम की अंधविश्वास कहकर तीव्र आलोचना की थी।
यह भारत का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि देश में वैज्ञानिक सोच विकसित करने के बजाय सरकार अन्धविश्वास को बढ़ावा देने के लिए लाखों रुपय खर्च कर रही है। श्री अर्जुन सिंह का तर्क है कि सभी लोग मुहूर्त देखकर कार्य करते हैं, अत: इसका विरोध नहीं किया जाना चाहिए। परन्तु यह तर्क न होकर एक मूर्खतापूर्ण कुतर्क है। यदि कोई कार्य अन्धविश्वासपूर्ण है, तो उसे सुधारा जाना चाहिये न कि उसका समर्थन किया जाना चाहिये। राहु काल आदि का विचार करके देश में अनेकों लोग अपना बहुमूल्य समय नष्ट करते हैं और इससे सम्पूर्ण राष्ट्र की उत्पादकता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। यदि ज्योतिष से इस प्रकार का कोई लाभ हो, तो भारत एक विकसित राष्ट्र होता, न कि अमेरिका और पश्चिमी यूरोप के वे देश जहाँ ज्योतिष जैसे अन्धविश्वासों को प्रत्येक कार्य के बीच नहीं घसीटा जाता है।
महर्षि दयानन्द सरस्वती और महात्मा गाँधी जैसे महापुरुषों ने भी ज्योतिष को एक घातक अन्धविश्वास की संज्ञा दी है। महर्षि दयानन्द सरस्वती के अनुसार वेदों में कहीं भी ज्योतिष का उल्लेख नहीं है, फिर भी इस अन्धविश्वास का प्रचार वैदिक ज्योतिष के नाम से किया जाता है। विज्ञान और सामान्य युक्ति, दोनों ये प्रमाणित करते हैं कि पौरुष और परिश्रम से मनुष्य अपना भाग्य स्वयं गढ़ता है।
अत: सम्पूर्ण राष्ट्र के लिए यही उचित होगा कि विश्वविद्यालयों में ज्योतिष का अध्यापन न हो, अपितु सिर्फ और सिर्फ वे विषय ही पढ़ाए जाएं जोकि विज्ञान की कसौटी पर सही सिद्ध हों।
Monday, August 02, 2004
Kahanii TV Serials Kay
कहानी टीवी धारावाहिकों की
आजकल के हिन्दी धारावाहिक बड़े ही अद्भुत हैं। इन्हें देखकर मैं प्राय: ही आश्चर्यचकित हो जाता हूँ। प्रथम तो इनका नाम ही दर्शनीय होता है। मैंने दर्शनीय कहा, न कि पठनीय; क्योंकि इनके नामों की वर्तनी ही इतनी निराली होती है कि उसे पढ़ना अपने आप में दुष्कर कार्य है। e की जगह a का व a की जगह e का और स्थान-स्थान पर ii (दो बार आई) का प्रयोग तो एक सामान्य सी बात है। फिर इन धारावाहिकों के नाम के प्रथम अक्षर में 'क' का वही महत्व है; जो वेदों में ओंकार का, नाजियों में स्वास्तिक का और मर्सिडीज़ कार में आगे लगे सितारे का होता है।
खैर ये तो कुछ भी नहीं है श्रीमान् ! इनकी विषय-वस्तु तो दर्शकों का सिर घुमा देती है। आपकी सारी पूर्वनिर्धारित धारणाएं ध्वस्त हो जाती हैं। उदाहरणार्थ इन धारावाहिकों में दिखाए जाने वाले विभिन्न चरित्रों को बार-बार संस्कारी कहा जाता है। लीजिए, खा गए न गच्चा। अरे ये वो संस्कारी नहीं हैं, जो आप समझ रहे हैं। इनकी परिभाषा ज़रा हट कर है। अब आप पूछेंगे भला कैसे हटकर है? इनके अनुसार संस्कारी होने से अभिप्राय उस व्यक्ति से है; जिसके विवाहेतर सम्बन्ध हों, जो दूसरों की बातें बाहर से दरवाज़े पर कान लगाकर सुनने का चिर अभ्यासी हो, जो दूसरे को नीचा दिखाने का कोई भी अवसर न छोड़ता हो और षड्यन्त्र करने में सिद्धहस्त हो।
इन धारावाहिकों के सम्वाद बड़े ही उबाऊ होते हैं, लेकिन दर्शक फिर भी पूरी तल्लीनता से कान लगाकर इन्हें सुनते हैं। यद्यपि आरम्भ में सम्वाद-लेखक का नाम भी लिखा आता है, किन्तु मैं नहीं मानता कि ये सम्वाद किसी मनुष्य ने लिखे हैं। मुझे पूरा विश्वास है कि ये सम्वाद कम्प्यूटरीकृत होते हैं। मेरे हिसाब से सम्वाद लेखन का कार्य कोई सॉफ्टवेयर करता है, जो अपने सीमित डेटाबेस के संस्कार, सिंदूर, आदर्श, परम्परा, परिवार और आदर इत्यादि शब्दों को randomly लगाकर नए-नए वाक्यों का निर्माण करता है। जैसेकि 'बुजुर्गों का आदर करना हमारे परिवार की परम्परा है' वगैरह वगैरह।
ये सभी 'क' वर्णारम्भ धारावाहिक समय नष्ट करने के लिए सर्वश्रेष्ठ साधन हैं। यदि आप खाली बैठे हैं और समय काटे नहीं कट रहा (भगवान करे ऐसा आपके साथ कभी न हो, क्योंकि ऐसा तो सिर्फ नौकरी छूटने के बाद ही होता है), तो अपना टीवी खोलें और ऐसा ही कोई धारावाहिक ज़रूर देखें। फिर मुझे बताएं कि इन धारावाहिकों के बारे में मेरे विचार कितने सही हैं।
आजकल के हिन्दी धारावाहिक बड़े ही अद्भुत हैं। इन्हें देखकर मैं प्राय: ही आश्चर्यचकित हो जाता हूँ। प्रथम तो इनका नाम ही दर्शनीय होता है। मैंने दर्शनीय कहा, न कि पठनीय; क्योंकि इनके नामों की वर्तनी ही इतनी निराली होती है कि उसे पढ़ना अपने आप में दुष्कर कार्य है। e की जगह a का व a की जगह e का और स्थान-स्थान पर ii (दो बार आई) का प्रयोग तो एक सामान्य सी बात है। फिर इन धारावाहिकों के नाम के प्रथम अक्षर में 'क' का वही महत्व है; जो वेदों में ओंकार का, नाजियों में स्वास्तिक का और मर्सिडीज़ कार में आगे लगे सितारे का होता है।
खैर ये तो कुछ भी नहीं है श्रीमान् ! इनकी विषय-वस्तु तो दर्शकों का सिर घुमा देती है। आपकी सारी पूर्वनिर्धारित धारणाएं ध्वस्त हो जाती हैं। उदाहरणार्थ इन धारावाहिकों में दिखाए जाने वाले विभिन्न चरित्रों को बार-बार संस्कारी कहा जाता है। लीजिए, खा गए न गच्चा। अरे ये वो संस्कारी नहीं हैं, जो आप समझ रहे हैं। इनकी परिभाषा ज़रा हट कर है। अब आप पूछेंगे भला कैसे हटकर है? इनके अनुसार संस्कारी होने से अभिप्राय उस व्यक्ति से है; जिसके विवाहेतर सम्बन्ध हों, जो दूसरों की बातें बाहर से दरवाज़े पर कान लगाकर सुनने का चिर अभ्यासी हो, जो दूसरे को नीचा दिखाने का कोई भी अवसर न छोड़ता हो और षड्यन्त्र करने में सिद्धहस्त हो।
इन धारावाहिकों के सम्वाद बड़े ही उबाऊ होते हैं, लेकिन दर्शक फिर भी पूरी तल्लीनता से कान लगाकर इन्हें सुनते हैं। यद्यपि आरम्भ में सम्वाद-लेखक का नाम भी लिखा आता है, किन्तु मैं नहीं मानता कि ये सम्वाद किसी मनुष्य ने लिखे हैं। मुझे पूरा विश्वास है कि ये सम्वाद कम्प्यूटरीकृत होते हैं। मेरे हिसाब से सम्वाद लेखन का कार्य कोई सॉफ्टवेयर करता है, जो अपने सीमित डेटाबेस के संस्कार, सिंदूर, आदर्श, परम्परा, परिवार और आदर इत्यादि शब्दों को randomly लगाकर नए-नए वाक्यों का निर्माण करता है। जैसेकि 'बुजुर्गों का आदर करना हमारे परिवार की परम्परा है' वगैरह वगैरह।
ये सभी 'क' वर्णारम्भ धारावाहिक समय नष्ट करने के लिए सर्वश्रेष्ठ साधन हैं। यदि आप खाली बैठे हैं और समय काटे नहीं कट रहा (भगवान करे ऐसा आपके साथ कभी न हो, क्योंकि ऐसा तो सिर्फ नौकरी छूटने के बाद ही होता है), तो अपना टीवी खोलें और ऐसा ही कोई धारावाहिक ज़रूर देखें। फिर मुझे बताएं कि इन धारावाहिकों के बारे में मेरे विचार कितने सही हैं।
Thursday, July 29, 2004
हिन्दी भाषा - ई समूह
विचार-सम्प्रेषण मानव-विकास के इतिहास का मूल है। किंतु यदि सम्प्रेषण स्वभाषा में न हो; तो वह प्रगति में सहायक नहीं होता, अपितु मार्ग में अवरोधक बनकर उसे कुंठित कर देता है। अत: यह नवीन ई-समूह स्वभाषा और निर्बाध वैचारिक-सम्प्रेषण के प्रति समर्पित है। कृपया सम्मिलित होना न भूले -
हिन्दी भाषा
हिन्दी भाषा
Wednesday, July 28, 2004
कुम्भकोणम का वह काला दिन
कुम्भकोणम की हृदयविदारक त्रासदी पर:
कुम्भकोणम का वह काला दिन
जिस व्यथा-कथा का वर्णन करने में अक्षम हैं शब्द
जहाँ गूंजती थी किलकारियां वह स्थान है निस्तब्ध
माँ की सिसकियों और क्रन्दन का वह सतत नाद
पूछता यह हर पल कि क्या उत्तरदायी है बस प्रारब्ध
कुम्भकोणम का वह काला दिन
अग्नि की विकट ज्वालाएं लीलती रही जीवन लीलाएं
पर हाय! कलियुगी गुरुजन देखते रहे जलती चिताएं
त्रासदी की पराकाष्ठा और सरकारी हताशा के स्वर
मिल उठाते यक्ष-प्रश्न क्या हलविहीन हैं ऐसी बलाएं
कुम्भकोणम का वह काला दिन
जिस व्यथा-कथा का वर्णन करने में अक्षम हैं शब्द
जहाँ गूंजती थी किलकारियां वह स्थान है निस्तब्ध
माँ की सिसकियों और क्रन्दन का वह सतत नाद
पूछता यह हर पल कि क्या उत्तरदायी है बस प्रारब्ध
कुम्भकोणम का वह काला दिन
अग्नि की विकट ज्वालाएं लीलती रही जीवन लीलाएं
पर हाय! कलियुगी गुरुजन देखते रहे जलती चिताएं
त्रासदी की पराकाष्ठा और सरकारी हताशा के स्वर
मिल उठाते यक्ष-प्रश्न क्या हलविहीन हैं ऐसी बलाएं
महंगाई
पहले से ही करों के बोझ से पिसी आम जनता पर मनमोहन सरकार द्वारा (पेट्रोल, डीज़ल और रसोई गैस की कीमतों में वृद्धि के कारण) पड़ी मार से उपजी कवि व्यथा का प्रतिफल यह कुण्डलिया छन्द :
महंगाई इतनी क्यों बढी,ये समझ न पावे कोय
बहुत अधिक गुस्सा आवे, मन का आपा खोय।
मन का आपा खोय,पर कर कोई कछहुं न पावे
ज़ोर-ज़ोर से हर कोई चीखे,चिल्लावे और गावे।
कहत प्रतीक यही,सबने लेख लिखे कविता गायी
कहत-सुनत जीवन बीता,पर कम न हुई महंगाई।
महंगाई इतनी क्यों बढी,ये समझ न पावे कोय
बहुत अधिक गुस्सा आवे, मन का आपा खोय।
मन का आपा खोय,पर कर कोई कछहुं न पावे
ज़ोर-ज़ोर से हर कोई चीखे,चिल्लावे और गावे।
कहत प्रतीक यही,सबने लेख लिखे कविता गायी
कहत-सुनत जीवन बीता,पर कम न हुई महंगाई।
भागो-भागो वामपन्थी आए
आजकल वामपन्थी मिसाइलें शेयर बाज़ार को ध्वस्त करने में व्यस्त हैं। हांलाकि वे बयान जिनसे शेयर बाज़ार औंधे मुंह गिर पड़ता है, काफी पुराने और सड़े गले हैं। लेकिन उनमें उतना ही दम है, जितना पुराने सड़े-गले टमाटरों में होता है। जिस तरह श्रोताओं व दर्शकों के हाथों में शोभायमान सड़े-गले टमाटरों के सामने मंच पर खड़े वक्ताओं और अभिनेताओं का मुंह सूख जाता है और मन में भय का अथाह सागर हिलोर मारने लगता है, ठीक यही हाल वामपन्थियों के सामने शेयर बाज़ार का है। अगर आप शहर के किसी अंग्रेज़ी स्कूल से पढ़े हुए हैं और जानना चाहते हैं कि गांव की किसी टाट-पट्टी वाली पाठशाला में मास्टर जी के सामने छात्र किस तरह थर थर कांपते हैं, तो आप इसका अनुभव वामपन्थियों के सामने शेयर बाज़ार की कल्पना कर सहज ही कर सकते हैं।
क्या आपने गॉडजिला फिल्म देखी है। हां, आप सब कम्प्यूटर वाले लोग हैं, तो अब फाइंड एंड रिप्लेस कमांड का प्रयोग करके गॉडजिला को कॉमरेड हरकिशन सिंह सुरजीत या सोमनाथ चटर्जी से रिप्लेस कर दीजिए और न्यूयॉर्क को दलाल स्ट्रीट से। अब कल्पना कीजिए उस दृश्य की जिसमें गॉडजिला (वामपन्थी) न्यूयॉर्क (दलाल स्ट्रीट) में तबाही मचाता है (संवेदी सूचकांक गिराता है), भगदड़ मच जाती है, माहौल में दहशत छा जाती है। क्या धांसू सीन है, वाकई रोमांचक है।
लेकिन सोचने वाली बात यह है कि वामपन्थियों की आर्थिक नीतियों की वजह से जो हाल अभी शेयर बाज़ार का हुआ है, कहीं वही हाल सारी अर्थव्यवस्था का न हो जाए।
क्या आपने गॉडजिला फिल्म देखी है। हां, आप सब कम्प्यूटर वाले लोग हैं, तो अब फाइंड एंड रिप्लेस कमांड का प्रयोग करके गॉडजिला को कॉमरेड हरकिशन सिंह सुरजीत या सोमनाथ चटर्जी से रिप्लेस कर दीजिए और न्यूयॉर्क को दलाल स्ट्रीट से। अब कल्पना कीजिए उस दृश्य की जिसमें गॉडजिला (वामपन्थी) न्यूयॉर्क (दलाल स्ट्रीट) में तबाही मचाता है (संवेदी सूचकांक गिराता है), भगदड़ मच जाती है, माहौल में दहशत छा जाती है। क्या धांसू सीन है, वाकई रोमांचक है।
लेकिन सोचने वाली बात यह है कि वामपन्थियों की आर्थिक नीतियों की वजह से जो हाल अभी शेयर बाज़ार का हुआ है, कहीं वही हाल सारी अर्थव्यवस्था का न हो जाए।
Online Hindi Literature
ऑनलाइन हिन्दी साहित्य
इंटरनेट एक ऐसा स्थान है, जहां किसी भी विषय से सम्बंधित विस्तृत जानकारी प्राप्त की जा सकती है। हांलाकि हिन्दी दुनिया की सबसे ज्यादा बोली जाने वाली तीसरी भाषा है, लेकिन फिर भी इस भाषा में इंटरनेट पर बहुत कम सूचनाएं उपलब्ध हैं। हिन्दी को इंटरनेट पर बढ़ावा देने के कई प्रयास किए जा रहे हैं। यदि आप मेरा अंग्रेज़ी ब्लॉग नियमित रूप से पढ़ते हैं, तो आपको पता होगा कि मैंने यह नया हिन्दी ब्लॉग बनाया है।
लेकिन ऐसा भी नहीं है कि हिन्दी में कुछ उपलब्ध ही न हो। हां,यह ज़रूर है कि उसे खोजना काफी कठिन है। वेबसर्फिंग के दौरान मुझे एक बहुत ही उपयोबी और रुचिकर वेब साइट मिली जहां पर अनेक पुस्तकें बहुतायात में डाउनलोड के लिए उपलब्ध हैं। यह वेबसाइट भारतसरकार के सूचना प्रौद्यौगिकी विभाग नें बनाई है। आप यहां पर अपने कुछ पसंदीदा लेखकों जैसे प्रेमचन्द, शिवानन्द एवं यशपाल जी को वहां पाएंगे।
ठीक है - ठीक है अब में लिखना बन्द करके आपको वेबसाइट का पता देता हूं कृपया नोट कीजिए -
सीडैक की डिजिटल लाइब्रेरी
कृपया ध्यान दें कि मुझे डाउनलोड की हुई फाइलों को माइक्रोसॉफट वर्ड 2000 में कुछ समस्याएं आ रही थीं और अन्त में मुझे वर्डपैड का सहारा लेना पड़ा।
इंटरनेट एक ऐसा स्थान है, जहां किसी भी विषय से सम्बंधित विस्तृत जानकारी प्राप्त की जा सकती है। हांलाकि हिन्दी दुनिया की सबसे ज्यादा बोली जाने वाली तीसरी भाषा है, लेकिन फिर भी इस भाषा में इंटरनेट पर बहुत कम सूचनाएं उपलब्ध हैं। हिन्दी को इंटरनेट पर बढ़ावा देने के कई प्रयास किए जा रहे हैं। यदि आप मेरा अंग्रेज़ी ब्लॉग नियमित रूप से पढ़ते हैं, तो आपको पता होगा कि मैंने यह नया हिन्दी ब्लॉग बनाया है।
लेकिन ऐसा भी नहीं है कि हिन्दी में कुछ उपलब्ध ही न हो। हां,यह ज़रूर है कि उसे खोजना काफी कठिन है। वेबसर्फिंग के दौरान मुझे एक बहुत ही उपयोबी और रुचिकर वेब साइट मिली जहां पर अनेक पुस्तकें बहुतायात में डाउनलोड के लिए उपलब्ध हैं। यह वेबसाइट भारतसरकार के सूचना प्रौद्यौगिकी विभाग नें बनाई है। आप यहां पर अपने कुछ पसंदीदा लेखकों जैसे प्रेमचन्द, शिवानन्द एवं यशपाल जी को वहां पाएंगे।
ठीक है - ठीक है अब में लिखना बन्द करके आपको वेबसाइट का पता देता हूं कृपया नोट कीजिए -
सीडैक की डिजिटल लाइब्रेरी
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