आदि काल से मनुष्य एक ऐसी शक्ति का प्रयोग करता रहा है, जो उसके विकास के लिए ज़िम्मेदार है। और यह शक्ति है 'विचार' की। यहाँ मैं विचार शब्द का इस्तेमाल कल्पना और सोचने से ज़्यादा प्रेक्षण के अर्थ में कर रहा हूँ, अवलोकन के अर्थ में कर रहा हूँ। मनुष्य ने जो भी प्रगति की है, वह प्रकृति के अवलोकन द्वारा ही की है। जहाँ विज्ञान की प्रगति बाह्य प्रकृति के अवलोकन का परिणाम हैं, वहीं अध्यात्म की प्रगति अंत:प्रकृति के सतत अवलोकन से हुई है।
लेकिन आज हालात बदल चुके हैं, जिसका ज़िम्मेदार इंसान का तकनीक को इस्तेमान करने का तरीक़ा है। कोई भी समस्या यह मौक़ा देती है कि उसका सामना किया जाए, उसे समझा जाए और उस पर विचार किया जाए। जिस तरह कसरत शरीर के लिए आवश्यक है, ठीक उसी तरह यह विचार, यह अवलोकन की क्रिया दिमाग़ के लिए ज़रूरी है। आज कोई भी समस्या सामने आने पर व्यक्ति उसका हल तुरंत इंटरनेट पर खोजने की कोशिश करता है, बजाय कि उस समस्या के सामने प्रेक्षक भाव से खड़े होने के, बजाय उस पर विचार करने के। और यह ज़हर की तरह घातक प्रवृत्ति धीरे-धीरे दिमाग़ को कुन्द कर रही है, ज़ंग लगा रही है।
ऐसी ही एक कहानी मैंने सुनी है कि संता सिंह के पास एक तलवार थी। तलवार पुरखों की थी और उस तलवार के बारे में कहा जाता था कि वह इतनी घातक है कि वह तलवार जिसके पास हो, उसके सामने पूरी सेना भी नहीं टिक सकती। संता सिंह उसे हमेशा अपने पास रखता था। उसका पड़ोसी बंता सिंह उस तलवार को पाना चाहता था। एक सुबह इसी बात को लेकर दोनों की आपस में कहा-सुनी हो गई। बंता ग़ुस्से में भर उठा और एक डण्डा उठाकर संता को मारने दौड़ा, संता - जिसके पास वह तलवार थी - हाथ में तलवार लिए बंता से बचने के लिए भागने लगा। बहुत दौड़ने के बाद बंता ने उसे पकड़ लिआ और डंडे से जमकर उसकी धुनाई की, साथ ही तलवार भी छीन ली। घर लौटने पर संता सिंह की पत्नी ने पूछा कि उसके पास तलवार थी तो फिर वो पिटा क्यों? इस पर संता बोला - "बहुत वक़्त से तलवारबाज़ी न करने की वजह से मैं तलवार चलाना भूल चुका हूँ, इसलिए लड़ते मैं तलवार डंडे की तरह इस्तेमाल कर रहा था। लेकिन बंता को तलवारबाज़ी आती है, इसलिए वह डण्डा भी तलवार की तरह चला रहा था। यही वजह है कि मैं पिट गया।" इंटरनेट भी हमारी विचार-शक्ति पर ऐसा ही दुष्प्रभाव डाल रहा है। हम तुरंत हल पाने के चक्कर में सोचने की क्षमता खोते जा रहे हैं।
किसी चीज़ का उपयोग अगर सही जगह पर किया जाए तो वह फ़ायदेमन्द होती है। सूचना के लेन-देन के लिए इंटरनेट महत्वपूर्ण है इसलिए सूचना के तल पर इसका इस्तेमाल वांछित है। लेकिन विचार के तल पर यह बहुत ख़तरनाक है। क्योंकि यह दिमाग़ को पराश्रित बनाता है। इंसान में यह प्रवृत्ति पुरानी है कि उसे पका-पकाया हल मिला जाए, लेकिन इंटरनेट से पहले यह आसान न था। इसलिए उसे अनमने तौर पर ही सही, लेकिन खुद ही विचार करना पड़ता था।
दुनिया की जितनी भी समस्याएँ हैं उसकी जड़ में एक ही चीज़ है - मनुष्य की दिक़्क़तों का 'रेडी मेड' हल पाने की इच्छा। मज़हब के नाम पर दुनिया भर में हुए इतने रक्तपात का क्या कारण है? यही कि लोगों ने जीवन समस्या का रेडी मेड हल खोजा और उससे जौंक की तरह चिपक गए। कुछ मुहम्मद के बताए हल से, कोई ईसा के हल से, दूसरे प्राचीन ऋषियों के बताए हल से चिपके रहे। और जड़ समाधानों से चिपका व्यक्ति मृत हो जाता है क्योंकि उसके विचार भी मृत हैं, वह उधार के विचारों से चिपका हुआ है। पहले यह हालात केवल आम ज़िन्दगी और धर्म के क्षेत्र में ही थे, विज्ञान इससे अछूता था। लेकिन इंटरनेट की विज्ञान में गहरी पैठ है और यह उसमें भी जड़त्व पैदा कर रहा है। अगर किसी प्रोग्रामर से पूछा जाए तो तुरंत पता चल जाएगा कि किसी समस्या के आने पर वह उस समस्या से विचार-शक्ति के साथ जूझता है या फिर उसे गूगल पर खोजता है? और धीरे-धीरे इंटरनेट का ऐसा इस्तेमाल तकनीक के क्षेत्र में भी पूरी तरह सड़ान्ध पैदा कर देगा, आज नहीं तो कल यह तय है। इसकी शुरुआत तो हो ही चुकी है। क्योंकि तकनीक से जुड़े लोग इस उधार के समाधान से पैदा हुए जड़त्व से बंध रहे हैं। हर इंसान उस समष्टि की इकाई है और अगर व्यष्टि के स्तर पर यह क्रमिक जरावस्था फैल रही है, तो समष्टि का भी उससे अछूता रह पाना मुमकिन नहीं है।
युवा और वृद्ध में क्या अंतर है? बस इतना ही कि युवा स्वतंत्र चिंतन में समर्थ है, उससे भयाक्रांत नहीं है। और यह स्वतंत्र विचारणा ही कुछ नया सीखने की क्षमता है। यही वजह है कि वृद्ध नया सीखने में अक्षम होने के कारण दिनों-दिन जड़ता की ओर खिसक रहा है - हर रोज़ मर रहा है - क्योंकि उसमें मौलिक सोच का साहस नहीं है, अपने पैरों पर खड़े होकर - अपने बल पर अज्ञात को खोजने की पिपासा नहीं है। इंटरनेट तरुणों की तरुणाई तोड़ रहा है, अज्ञात में निर्भीक होकर छलांग लगाने की क्षमता को तोड़ रहा है। उन्हें पराश्रित बना रहा है रेडी मेड समाधान दे कर।
मैं यह नहीं कहता कि इंटरनेट व्यर्थ है। यह सूचना के तल पर परम-उपयोगी है, लेकिन आगे बढ़ने के लिए चिंतन के तल पर इसे छोड़ना ज़रूरी है। इसलिए यह समझने की ज़रूरत है कि इसे कहाँ उपयोग करना है और कब नहीं। इस पर विचार करने की ज़रूरत है।